अपने गले में लटके मंगलसूत्र के तमगे को वह अपने अँगूठे और दो अँगुलियों के बीच उलटती-पलटती रही। उसकी सूखी आँखें चारदीवारी की कसमसाती खामोशी को घूरती रहीं। उससे चंद कदमों की दूर पर ही करन अपनी पत्नी के हाथ के तमगे की तरह अपने बदन के पुराने सोफे पर उलटता-पटलता जा रहा था वह पहला अवसर नहीं था कि करन उस...
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